कुछ व्यक्ति सोचते हैं की अपना जीवन ऐसा हो जिसमे कोई दुःख ना हो। और सारा अनमोल जीवन नश्वर सुख को पाने में खो देता है। लेकिन मेरे तुलसी बाबा कहते हैं:-
"निर्धन कहे धनवान सुखी,
धनवान कहे सुख राजा को भारी।
राजा कहे महाराजा सुखी,
महाराजा कहे सुख इंद्र को भारी।
इंद्र कहे सुख चतुरानन(ब्रह्मा) को,
ब्रह्मा कहे सुख विष्णु को भारी।
पर तुलसी ये विचार करे,
राम भजन बिन सब जीव दुखारी।।"
हम इस दुखाल्य में सुख ढूंडते फिरते हैं लेकिन सचा सुख कहा मिलेगा-
" सब सुख लहहि तुम्हारी सरना"
सचा सुख तो केवल श्री रघुनाथ जी के चरणों में ही मिलेगा।
आज एक सत्संग में बड़ी सुन्दर बात सुनी जिसमे तुलसी दास जी ने कहा-
" तन सुखा पिंजर कियो,
धरो ध्यान दिन रैन।
तुलसी मिटे ना वासना,
बिना विचारे ज्ञान।।"
हम सब साधक एक ऐसे परम तत्व को पा लेना चाहते है जो परम सुंदर हैं, सर्व आकर्षक हैं, जिनका आदि अंत नहीं है, सर्व गुण संपन्न हैं। तो क्या उतना साधन कर पाते हैं।
जैसे ही कोई छोटा सा भोग हमारे सामने आती है हम अपना विवेक खो देते हैं।
इसलिए कुछ समय अपने स्वाध्याय के लिए निकालकर , विचार करे की ठाकुर जी को पाने के लिए मैंने जो साधन चुना है वो सही है या नहीं....मेरा साधन कैसा चल रहा है। निरंतर साधन उपयोगी पुस्तके पढ़ते रहें।
।।जय समर्थ रघुवीर।।
Jay sitaram
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