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भगवान् के साथ सम्बन्ध।

आप थोड़ा ध्यान देकर सुनें तो बात आपकी समझमें आ जाय ।

घरमें छोटा-सा बालक होता है ।

यदि वह रात्रिमें रोने लग जाय तो घरमें माता, पिता, दादी, दादा, ताऊ, चाचा आदि सभीको जगा देता है ।

सभी कहते हैं कि बच्चा क्यों रोता है ?

औषध दो, वैद्यको बुलाओ, डाक्टरको दिखाओ ।

उसके रोनेमें इतनी ताकत है कि वह सब घरवालोंको नचा देता है ।

किसके बल पर ?

अपनेपनके बलपर ।

घरवाले समझते है कि अपना बच्चा है ।

वे उसकी योग्यता, विद्या, बुद्धि, बल, त्याग आदि कुछ नहीं देखते ।

इसी प्रकार भगवान् जितना अपनेपनको महत्त्व देते है, उतना भजन, साधन, जप, कीर्तन, तप, योग्यता, अधिकार आदि किसीको नहीं देते ।

भीतरसे यह अटूट सम्बन्ध हो कि हम तो भगवान्‌के है और भगवान् हमारे है ।

इसमें बड़ी भारी ताकत है ।

एक करोड़पतिका लड़का है, जो बहुत योग्य नहीं है और मुनीम है, जो बहुत योग्य है; वह दस हजार मासिक वेतन पाता है ।

लड़का यदि और कहीं जाकर नौकरी करे तो उसे सौ रुपये महीना भी शायद ही कोई दे ।

सौ रुपये मिलना भी मुश्किल है; क्यों ?

योग्यता नहीं है ।

परन्तु सेठके मरनेपर मालिक योग्य मुनीम नहीं, अयोग्य लड़का ही बनता है ।

क्यों? क्योंकि वह मालिकका अपना है ।

योग्यतासे नौकरी मिलेगी ।

जितनी योग्यता होगी, उतनी ही नौकरी मिलेगी ।

परन्तु मैं भगवान्‌का ही हूँ, भगवान् ही मेरे हैं, संसार मेरा नहीं, मैं संसारका नहीं हूँ‒इस मान्यताके समान कोई योग्यता नहीं, कोई बल नहीं है ।

आप कहीं सत्संगमें बैठे है ।

पर भीतरसे सम्बन्ध जुड़ा हुआ है कि घर मेरा है, कुटुम्ब मेरा है, धन मेरा है ।

यह जो मेरेपनका भाव है‒यही बन्धन है ।

यही सम्बन्ध अगर भगवान्‌से कर लें तो बन्धनसे मुक्त हो जायँ और निहाल हो जायँ ।

यह जो बात है, इसमें बड़ी ताकत है ।

आपका घर, कुटुम्ब, धन जिसे आप अपना मानते है; ये अबसे सौ वर्ष पहले आपके थे क्या ?

और सौ वर्ष बाद आपके रहेंगे क्या ?

‘आदावन्ते च यन्नास्ति वर्तमानेऽपि तत्तथा’ जो आदि- अन्तमें नहीं होता, वह वर्तमानमें भी नहीं होता ।

ये वास्तवमें है नहीं, केवल दीखते हैं । तो क्या करना है?

इनका सदुपयोग करो ।

ये सदुपयोगके लिये हैं ।

अधिकार जमानेके लिये, कब्जा करनेके लिये नहीं ।

जैसे हम यहाँ इस बगीचेमें रहते हैं, काम करते है, भोजन करते हैं, जल पीते है ।

हमें यह बगीचा रहनेके लिये दिया है, कब्जा करनेके लिये नहीं ।

यदि कब्जा जमाने लगें तो कान पकड़कर बाहर कर दिये जायँगे ।

इसी प्रकार यह संसार (अर्थात् धन, सम्पत्ति, परिवार, पद आदि) अधिकार जमानेके लिये नहीं मिला है ।

अपितु अपना उद्धार करनेके लिये, अपना कल्याण करनेके लिये मिला है ।

ये सब संसारकी सामग्री आप सदा रखना चाहो, रख सकोगे नहीं ।

फिर क्यों इज्जत खोते हो ?

मारवाड़ी शब्दोंमें‒ ‘क्यों माजनो गमावे’ , केवल बेइज्जती होगी और क्या मिलेगा ? एक बात और है ।

उसकी ओर विशेष ध्यान देना है‒ भगवान्‌के साथ नया सम्बन्ध नहीं जोड़ना है ।

हम सोचते हैं कि संसारके साथ तो हमारा सम्बन्ध है; परंतु भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़ेंगे ।

लेकिन भगवान्‌के साथ हमारा सम्बन्ध स्वतः है, केवल भूल गये हैं ।

अतः भूलको छोड़ना है और हमारा जोड़ा हुआ सम्बन्ध तो संसारसे है ।

अतः उस जोड़े हुए सम्बन्धको छोड़ना है ।

असली सम्बन्धको याद करना है कि हम भगवान्‌के हैं ।

पूरी गीताका उपदेश सुनानेपर भगवान्‌ने अर्जुनसे पूछा कि क्या तूने एकाग्रतासे गीता सुनी और क्या तेरा मोह नष्ट हुआ ?

तो अर्जुनने उत्तर दिया‒ ‘नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा’ अर्थात् मोह नष्ट हो गया और पुरानी बात याद आ गयी, कोई नयी चीज नहीं हुई ।

क्योंकि भगवान्‌के साथ पहलेसे स्वतः सम्बन्ध है, मैं भगवान्‌का हूँ‒यह बात भूल गया था, अब याद आ गयी ।

।।जय श्री राम।।

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