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मीरा चरित (42)

🌿मीरा चरित (42)

क्रमशः से आगे ...

श्रावण की मंगल फुहार ने प्रियतम के आगमन की सुगन्ध चारों दिशाओं में व्यापक कर दी ।मीरा को क्षण क्षण प्राणनाथ के आने का आभास होता -वह प्रत्येक आहट पर चौंक उठती ।वह गिरधर के समक्ष बैठे फिर गाने लगी .......

🌿सुनो हो मैं हरि आवन की अवाज।
महल चढ़ चढ़ जोऊँ मेरी सजनी,
कब आवै महाराज ।
सुनो हो मैं हरि आवन की अवाज॥

🌿दादर मोर पपइया बोलै ,
कोयल मधुरे साज ।
उमँग्यो इंद्र चहूँ दिसि बरसै,
दामणि छोड़ी लाज ॥

🌿धरती रूप नवा-नवा धरिया,
इंद्र मिलण के काज ।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी,
बेग मिलो सिरताज॥🌿

भजन पूरा करके मीरा ने जैसे ही आँखें उघाड़ी , वह हर्ष से बावली हो उठी ।सम्मुख चौकी पर श्यामसुन्दर बैठे उसकी ओर देखते हुये मंद मंद मुस्कुरा रहे थे ।मीरा की पलकें जैसे झपकना भूल गई ।कुछ क्षण के लिए देह भी जड़ हो गई ।फिर हाथ बढ़ा कर चरण पर रखा यह जानने के लिए कि कहीं यह स्वप्न तो नहीं ? उसके हाथ पर एक अरूण करतल आ गया । उस स्पर्श ....... में मीरा जगत को ही भूल गई ।

" बाईसा हुकम !"मंगला ने एकदम प्रवेश किया तो स्वामिनी को यूँ किसी से बात करते ठिठक गई ।

मीरा ने पलकें उठाकर उसकी ओर देखा ।" मंगला ! आज प्रभु पधारे है ।जीमण (भोजन ) की तैयारी कर ।चौसर भी यही ले आ ।तू महाराज कुमार को भी निवेदन कर आ ।"

मीरा की हर्ष-विह्वल दशा देखकर मंगला प्रसन्न भी हुई और चकित भी ।उसने शीघ्रता से दासियों में संदेश प्रसारित कर दिया ।घड़ी भर में तो मीरा के महल में गाने -बजाने की धूम मच गई ।चौक में दासियों को नाचते देख भोजराज को आश्चर्य हुआ ।मंगला से पूछने पर वह बोली ," कुंवरसा ! आज प्रभु पधारे है ।"

भोजराज चकित से गिरधर गोपाल के कक्ष की ओर मुड़ गये ।वहां द्वार से ही मीरा की प्रेम-हर्ष-विह्वल दशा दर्शन कर वह स्तम्भित से हो गये ।मीरा किसी से हँसते हुये बात कर रही थी- " बड़ी कृपा ........की प्रभु .....आप पधारे .....मेरी तो आँखें ......पथरा गई थी...... प्रतीक्षा में ।"

भोजराज सोच रहे थे ," प्रभु आये है, अहोभाग्य ! पर हाय! मुझे क्यों नहीं दर्शन नहीं हो रहे ?"

मीरा की दृष्टि उनपर पड़ी ।" पधारिये महाराजकुमार ! देखिए , मेरे स्वामी आये है ।ये है द्वारिकाधीश , मेरे पति ।और स्वामी , यह है चित्तौड़गढ़ के महाराजकुमार ,भोजराज , मेरे सखा ।"

" मुझे तो यहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा ।" भोजराज ने सकुचाते हुए कहा ।

मीरा फिर हँसते हुये बोली "आप पधारे ! ये फरमा रहे है कि आपको अभी दर्शन होने में समय है ।"

भोजराज असमंजस में कुछ क्षण खड़े रहे फिर अपने शयनकक्ष में चले गये ।मीरा गाने लगी--

🌿आज तो राठौड़ीजी महलाँ रंग छायो।

🌿आज तो मेड़तणीजी के महलाँ रंग छायो।
कोटिक भानु हुवौ प्रकाश जाणे के गिरधर आया॥

🌿सुर नर मुनिजन ध्यान धरत हैं वेद पुराणन गाया
मीरा के प्रभु गिरधर नागर घर बैठयौं पिय पाया॥

क्रमशः ..... .

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