गीता में श्रीकृष्ण भगवान के नामों के अर्थ
अनन्तरूपः जिनके अनन्त रूप हैं वह|
अच्युतः जिनका कभी क्षय नहीं होता, कभी अधोगति नहीं होती वह|
अरिसूदनः प्रयत्न के बिना ही शत्रु का नाश करने वाले|
कृष्णः 'कृष्'सत्तावाचक है|'ण' आनन्दवाचक है|इन दोनों के एकत्व का सूचक परब्रह्म भी कृष्ण कहलाता है|
केशवः क माने ब्रह्म को और ईश – शिव को वश में रखने वाले|
केशिनिषूदनः घोड़े का आकार वाले केशि नामक दैत्य का नाश करने वाले|
कमलपत्राक्षः कमल के पत्ते जैसी सुन्दर विशाल आँखों वाले|
गोविन्दः गो माने वेदान्त वाक्यों के द्वारा जो जाने जा सकते हैं|
जगत्पतिः जगत के पति|
जगन्निवासः जिनमें जगत का निवास है अथवा जो जगत में सर्वत्र बसे हुए है|
जनार्दनः दुष्ट जनों को, भक्तों के शत्रुओं को पीड़ित करने वाले|
देवदेवः देवताओं के पूज्य|
देववरः देवताओं में श्रेष्ठ|
पुरुषोत्तमः क्षर और अक्षर दोनों पुरुषों से उत्तम अथवा शरीररूपी पुरों में रहने वाले पुरुषों यानी जीवों से जो अति उत्तम, परे और विलक्षण हैं वह|
भगवानः ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, वैराग्य और मोक्ष... ये छः पदार्थ देने वाले अथवा सर्व भूतों की उत्पत्ति, प्रलय, जन्म, मरण तथा विद्या और अविद्या को जानने वाले|
भूतभावनः सर्वभूतों को उत्पन्न करने वाले|
भूतेशः भूतों के ईश्वर, पति|
मधुसूदनः मधु नामक दैत्य को मारने वाले|
महाबाहूः निग्रह और अनुग्रह करने में जिनके हाथ समर्थ हैं वह|
माधवः माया के, लक्ष्मी के पति|
यादवः यदुकुल में जन्मे हुए|
योगवित्तमः योग जानने वालों में श्रेष्ठ|
वासुदेवः वासुदेव के पुत्र|
वार्ष्णेयः वृष्णि के ईश, स्वामी|
हरिः संसाररूपी दुःख हरने वाले।
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