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गोपी गीत।

गोपी गीत................है गोविंद ! इस ब्रज मै आपके चरणो की रज है....इस रज को अपने मस्तक पर लगाने के लिए स्वय देवाधिदेव महादेव भी कैलाश छोड ब्रज मै आगये....तीनो देवता पर्वत रूप मै यहा विराजते है, लक्ष्मी अगर यहा दासी बनके रहती हैं तो कोन सी बडी बात है.......नारायण ने कहा था...देवी आप ब्रज मै जाकर क्या करोगी, वहा तो विशुद्ध भक्ति का वास है वहा आपका क्या काम...लक्ष्मी बोली....प्रभो ! यह बैकुण्ठ तो शुद्ध सत्वमय भूमि है यहा रजोगुण नही है तो आपके चरणो की रज भी नही है..देखिये आपके चरणो की इस रज मै लोट लगाने के लिये समस्त देवता स्वर्ग, ब्रह्मलोक, कैलाश आदि को छोड ब्रज मै पहुच रहै है मुझे भी अपने इन चरणो की रज का आनन्द प्राप्त करने दीजिए......ठाकुर जी बोले.....देवि ! मेरे चरणो मै तो मेरे भक्त, वैष्णव, सन्त तुलसी बहुत भीड है वहा आप का तो कोई स्थान ही नही.....लक्ष्मी जी बोली.....प्रभु मै आपके भक्त वैष्णवो की भी दासी बनकर रह लगी पर मुझे यहा छोड कर मत जाईये.....इसलिए लक्ष्मी जी ब्रज मै सौन्दर्य रूप मै विराजमान है.....छोटे से बाल गोपाल सोचते है कि देखो जो मागता है वो मुझसे मेरे चरणो का वास मागता है, ऐसा है क्या मेरे चरणो मै.....करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम ! गोपाल अपने पैर के अंगूठे को मुँह मै रख लेते है....ऐसी कौनसी मिठास है मेरे चरणो मै जो भक्त इसे छोडते ही नही......ओर देखिये यही एक ऐसी भूमि है जहा ठाकुर ने कभी चरण पादुका धारण नही कि......मैया सदेव कहती...कनुआ तेरे पांव न मै कछु लग गयो ना दारी के जब पतो चलेगी तोहे, मेरे यहा कोई कमी है का जो तू नंगे पाँवन डोले......ठाकुर जी ने ब्रज मै कभी पादुका धारण नही कि तो उसका एक कारण यह ही रहा होगा क्योंकि बैकुण्ठ मै तो चरणो की रज मिलती नही अपने भक्तो को....इस ब्रज भूमि के कण कण मै गोविंद के चरणो का वास है......इसलिए गोपीयाँ कहती है गोविंद इस ब्रज भूमि को हम नमस्कार करती है......श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि.....राधै राधै.......अभिषेक कृष्ण गोस्वामी श्री धाम बरसाना

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