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श्री कृष्ण और बहते दिये।

श्रीकृष्ण और बहते दीये

🌼कार्तिक महीने में दीप-दान का चलन है। सभी माताएँ कार्तिक में नदी में दीप बहाती हैं।

मैया यशोदा भी दीप-दान के लिए तैयार हुई। कन्हैया ने उन्हें देख लिया और साथ जाने की जिद्द करने लगे।

मैया ने उन्हें अपने साथ ले लिया।जब मैया यमुना जी में दीप बहा रही थीं तो श्रीकृष्ण यमुनाजी में उतर गए और जहाँ पर घुटने तक पानी था , वहाँ पहुँच गए।

औरदीये पकड़ कर किनारे पर लाने लगे। मैया यशोदा ने उन्हें देखा और कहा कि ये क्या कर रहे हो ? उन्होंने कहा कि दीये किनारेलगा रहा हूँ।

मैया ने कहा कि दीप तो बहने के लिए ही हैं।श्रीकृष्ण कहते हैं कि - बहतो को किनारे लगाना ही तो मेरा काम है और वही मैं कर रहा हूँ।

मैया कहती है कि इतने असंख्य दीप बहे जा रहे हैं , सब को किनारे किसलिए नहीं लगाते। तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि यही तो राज की बात है।

जो बहते हुए मेरेसमीप आ जाता है , मैं उसे ही किनारे लगाता हूँ।

हमारा बहाव भी ईश्वर की ओर होना चाहिए , किनारे लगाना उसका काम है।

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