श्रीबाँकेबिहारी जी मन्दिर में केवल शरद
पूर्णिमा के दिन श्री श्रीबाँकेबिहारी जी
वंशीधारण करते हैं।
केवलश्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं
एवं
जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला–आरती होती हैं। जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति
को ही प्राप्त होते हैं। और
चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है।
इन चरण-कमलों का जो दर्शन करता है उसका तो
बेड़ा ही पार लग जाता है।
स्वामी हरिदास जी संगीत के प्रसिद्ध गायक एवं तानसेन के गुरु थे। एक दिन प्रातःकाल स्वामी जी
देखने लगे कि उनके बिस्तर पर कोई रजाई ओढ़कर सो
रहा हैं। यह देखकर स्वामी जी बोले– अरे मेरे बिस्तर
पर कौन सो रहा हैं। वहाँ श्रीबिहारी जी स्वयं
सो रहे थे।
शब्द सुनते ही बिहारी जी निकल भागे। किन्तु वे अपने चुड़ा एवं वंशी, को विस्तर पर रखकर चले गये।
स्वामी जी, वृद्ध अवस्था में दृष्टि जीर्ण होने के
कारण उनकों कुछ नजर नहीं आय। इसके पश्चात श्री
बाँकेबिहारीजी मन्दिर के पुजारी ने जब मन्दिर
के कपाट खोले तो उन्हें श्री बाँकेविहारीजी
मन्दिर के पुजारी ने जब मन्दिर में कपट खोले तो उन्हें श्रीबाँकेबिहारी जी के पलने में चुड़ा एवं वंशी नजर
नहीं आयी। किन्तु मन्दिर का दरवाजा बन्द था।
आश्चर्यचकित होकर पुजारी जी निधिवन में
स्वामी जी के पास आये एवं स्वामी जी को सभी
बातें बतायी। स्वामी जी बोले कि
प्रातःकाल कोई मेरे पंलग पर सोया हुआ था। वो जाते वक्त कुछ छोड़ गया हैं। तब पुजारी जी ने
प्रत्यक्ष देखा कि पंलग पर श्रीबाँकेबिहारी जी
की चुड़ा–वंशी विराजमान हैं। इससे प्रमाणित
होता है कि श्रीबाँकेबिहारी जी रात को
रास करने के लिए निधिवन जाते हैं।
इसी कारण से प्रातः श्रीबिहारी जी की मंगला–आरती नहीं होती हैं। कारण–रात्रि में
रास करके यहां बिहारी जी आते है। अतः प्रातः
शयन में बाधा डालकर उनकीआरती करना अपराध हैं।
जय जय श्री राधे
में परमात्मा का हूँ परमात्मा मेरे हैl
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