(((( श्री रांका बांका जी ))))))))
.
श्री रांका-बांका (पति पत्नी) जी दोनो उच्च कोटी के भक्त हुए हैं। भक्त श्री रांका जी पति थे और भक्ति मती श्री बांका जी उनकी पत्नी थी।
.
इन दोनो के ह्रदय में सिवा भगवान के और कुछ भी चाह नहीं थी। यह दोनो जंगल से लकड़ियां बीन कर लाते और उन्हीं को बेचकर अपनी नित्य नवीन जीविका करते थे।
.
एक बार संत श्री नामदेव जी ने भगवान् श्री कृष्ण से विनती की कि भक्ति रांका-बांका जी की गरीबी दूर कर दीजिये।
.
भगवान् ने कहा – मैने बहुत उपायों से इन्हे देना चाहा, परंतु ये लेते ही नहीं, यदि नही मानो तो मेरे संग चलो, मै इनकी निष्कामता दिखलाऊँ।
.
फिर तो भगवान ने मार्ग में एक स्वर्ण मुहरों से भरी थैली डाल दी और स्वयं तथा श्री नामदेव जी दोनों जंगल में छिप गये।
.
इतने में श्री रांका-बांका जी दोनों उसी मार्ग से आये। आगे पति रांका जी थे और पीछे पत्नी बांका जी थी।
.
एकाएक श्री रांका जी ने मार्ग में पडी हुई मुहरों से भरी हुई थैली देखी। देखकर विचार किया कि मेरी पत्नी भले निष्काम है फिर भी दृष्टिपथ में आने पर लौकिक वस्तुओं भी मन फंस जाता है,
.
कही यह धन देखकर इसकी धन पाने की इच्छा न हो जाए। अतः पति श्री रांका जी ने शीघ्रता पूर्वक उस थैली पर धूल डाल दी।
.
श्री बांका जी ने पति से पूछा – अजी, आपने यहां पृथ्वी पर झुक कर क्या किया है ?
.
तब श्री रांका जी ने सत्य बात बता दी। तब पत्नी श्री बांका जी ने कहा, आप धूल के ऊपर धूल डालने का व्यर्थ परिश्रम क्यों कर रहे थे ? अभी आपके मन में धन का ग्यान बना ही है ?
.
यह सुनकर श्री रांका जी बोले – लोग मुझे रांका अर्थात् रंक और तुम्हे बांका अर्थात् श्रेष्ठ कहते है, यह सत्य ही है की तुम मुझसे श्रेष्ठ हो। यह बात मैने आज देख ली।
.
इनकी ये बातें सुनकर भगवान् विठ्ठल श्रीकृष्ण, श्री नामदेव जी से बोले – देखो, हमारी बात सत्य हुई। ये दोनों धन के प्रति कितने निस्पृह हैं।
.
भगवान की जीत हुई और श्री नामदेव जी हार गये। फिर भगवान ने कहा – यदि तुम्हारे मन में विषेश परिताप है कि श्री रांका-बांका जी की सहायता करनी ही चाहिए तो चलो इनके लिए लकड़ी बटोरो।
.
फिर श्री भगवान् और श्री नामदेव जी लकड़ियां बटोरने लगे।
.
तदुपरांत श्री रांका-बांका जी लकडी बीनने आये तो जहां वहां लकडीयों का ढेर देख कर इनका मन भयभीत हुआ।
.
तब भगवान् श्री श्याम सुंदर ने प्रकट होकर दर्शन दिया।
.
श्री रांका-बांका जी श्री भगवान् को घर लिवा लाये। भगवान के संग श्री नामदेव जी को देखा तो श्री रांका जी ने कहां – अरे मूडफेरा ! श्री प्रभु को इस प्रकार वन वन भटकाया जाता है ?
.
भगवान् ने श्री रांका जी से कुछ मांगने का अनुरोध किया। तब वे हाथ जोड कर प्रार्थना करने लगे कि मुझे आपकी कृपा के सिवा और कुछ भी नहीं चाहिए।
.
तब श्री नामदेव जी ने कहा की कुछ नही तो प्रभु का रुख रखते हुए प्रभु का एक प्रसादी वस्त्र ही शरीर पर धारण कर लीजिये।
.
यद्यपि इतने से भी श्री रांका-बांका जी को लगा कि सिर पर भारी बोझ पड गया, परंतु उन्होने भक्त और भगवान् की रुचि रखनेके लिये वस्त्र मात्र स्वीकार कर लिया।
जय जय श्री राधे
Comments
Post a Comment