🌿मीरा चरित (73)
क्रमशः से आगे ...........
"वैद्यराज जी जीवित हो गये हुकम !" दीवान ने महाराणा से आकर निवेदन किया ।
" हैं क्या ?" महाराणा चौंक पड़े ।फिर संभल कर बोले ," वह तो मरा ही न था ।यों ही मरने का बहाना किए पड़ा था डर के मारे ।मुझे ही क्रोध आ गया था , सो प्रहरी को उसे आँखों के सामने से हटाने को कह दिया ।भूल अपनी ही थी कि मुझे ही उसे अच्छे से देखकर उसे भेजना चाहिए था ।वह विष था ही नहीं - विष होता तो दोनों कैसे जीवित रह पाते ?"
सामन्त और उमराव मीरा को विष देने की बात से क्रोधित हो महाराणा को समझाने आये तो उल्टा विक्रमादित्य उनसे ही उलझ गया -" वह विष था ही नहीं , वो तो मैने किसी कारणवश मैंने वैद्यजी को डाँटा तो वह भय के मारे अचेत हो गये ।घर के लोग उठाकर भाभीसा के पास ले आये तो वे भजन गा रही थी ।भजन पूरा हो गई तो तब तक उनकी चेतना लौट आ गई ।बाहर यह बात फैला दी कि मैंने वैद्य ज़ीको मार डाला और भाभी जी ने उनको जीवित कर दिया ।"
महाराणा के स्वभाव में कोई अन्तर न था । उनको तो यह लग रहा था मानो वह एक स्त्री से हार रहे हो -जैसे उनका सम्मान दाँव पर लगा हो ।वे एकान्त में भी बैठे कुछ न कुछ मीरा को मारने के षडयन्त्र बनाते रहते ।एक दिन रानी हाँडी जी ने भी बेटे को समझाने का प्रयास किया ," मीरा आपकी माँ के बराबर बड़ी भाभी है, फिर उनकी भक्ति का भी प्रताप है ।देखिए , सम्मान तो शत्रु का भी करना चाहिए ।जिस राजगद्धी पर आप विराजमान है , उसका और अपने पूर्वजों का सम्मान करें ।ओछे लोगों की संगति छोड़ दीजिये ।संग का रंग अन्जाने में ही लग जाता है ।दारू, भाँग ,अफीम और धतूरे का सेवन करने से जब नशा चढ़ता है , तब मनुष्य को मालूम हो जाता है कि नशा आ रहा है , किन्तु संग का नशा तो इन्सान को गाफिल करके चढ़ता है ।इसलिए बेटा , हमारे यहाँ तो कहावत है कि " काले के साथ सफेद को बाँधे, वह रंग चाहे न ले पर लक्षण तो लेगा ही ।" आप सामन्तो की सलाह से राज्य पर ध्यान दें । आप मीरा को नज़रअन्दाज़ करें , मानो वह जगत में है ही नहीं ।"
उधर मीरा की दासियाँ रोती और सोचती ," क्या हमारे अन्नदाता (वीरमदेव )जी जानते होंगे कि बड़े घरों में ऐसे मारने के षडयन्त्र होते होंगे ।ऐसी सीधी , सरल आत्मा को भला कोई सताता है ? बस भक्ति छोड़ना उनके बस का काम नहीं ।भगवान के अतिरिक्त उन्हें कुछ सूझता ही नहीं ,मनुष्य का बुरा सोचने का उनके पास समय कहाँ ।?पर इनकी भक्ति के बारे में जानते हुये यह सम्बन्ध स्वीकार किया था अब उसी भक्ति को छुड़वाने का प्रयास क्यों ? छो�टे मुँह बड़ी बात है पर ....... चित्तौड़ों के भाग्य से ऐसा संयोग बना था कि घर बैठे सबका उद्धार हो जाता , पर दुर्भाग्य ऐसा जागा कि कहा नहीं जाता ।दूर दूर से लोग सुनकर दौड़े दर्शन को आ रहे है और यहाँ आँखों देखी बात का भी इन्हें विश्वास नहीं हो रहा ।भगवान क्या करेंगे , सो तो भगवान ही जाने , किन्तु इतिहास सिसौदियों को क्षमा नहीं करेगा ।"
इधर मीरा भक्ति भाव मे सब बातों से अन्जान बहती जा रही थी ।भगवा वस्त्र और तुलसी माला धारण कर वह सत्संग में अबाध रूप से रम गई ।जब मन्दिर में भजन होते तो वह देह -भान भूल कर नाचने गाने लगती .........
🌿मैं तो साँवरे के रंग राची......
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