"जीव ईश्वर का अंश है, तो.. ईश्वर के समान शक्ति
उसमें क्यों नहीं हैं?" यह प्रश्न एक शिष्य ने गुरु से पूछा।
गुरु ने विस्तार पूर्वक उत्तर दिया पर शिष्य की समझ
में न आया... शंका बनी ही रही।एक दिन गुरु और
शिष्य गंगा स्नान के लिये गये। गुरू ने शिष्य से कहा-
"एक लोटा गंगा जल भर लो।" उसने भर लिया।घर
आकर गुरु ने कहा- "बेटा इस गंगा जल में नाव
चलाओ।"शिष्य ने कहा- "नाव तो गंगाजी के बहुत से
जल में चलती हैं, इतने थोड़े जल में कैसे चल सकती हैं?"गुरु
ने कहा- "यही बात जीव और ईश्वर के संबंध में है। जीव
अल्प है, उसमें शक्ति भी थोड़ी है। ईश्वर विभु है, उसमें
अनन्त शक्ति है। इसप्रकार दोनों की शक्ति और
कार्य क्षमता न्यूनाधिक है। जिसप्रकार लोटे का
जल भी गंगाजल ही था, परंतु उसमें नाव नहीं चल
सकती थी, इसी प्रकार जीव अल्प होते हुये भी
ईश्वर का अंश ही है। परंतु जब जीव ईश्वर का
सान्निध्य प्राप्त कर उसी में निमग्न हो जाता है
तो उसमें भी ईश्वर जैसी शक्ति आ जाती है।"
🙏जय श्री कृष्णा🙏
में परमात्मा का हूँ परमात्मा मेरे हैl
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