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चिन्ता नहीँ भगवत्चिंतन की आवश्यकता हैँ।

💐|| चिन्ता नहीं भगवत्चिंन्तन की आवश्यकता हैँ

💐 जो होनेवाला है, वह होकर ही रहेगा और जो नहीं होनेवाला है वह कभी नहीं होगा , फिर चिन्ता किस बात की ?

तुलसी भरोसे राम के निर्भय होके सोय | अनहोनी होनी नहीं होनी हो सो होय ||

( संत तुलसी दास जी ) ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये - इसमें ही सब दु:ख भरे हुये हैं |

अत: जिन्दगी की डोर सोंप हाथ दीनानाथ के | महलों मे राखे चाहे झोंपडी में वास दे |

शरीर निर्वाह के लिये तो चिन्ता करने की जरूरत ही नहीं है, पर शरीर छूटने के बाद क्या होगा इसके लिये चिन्ता करने की बहुत जरूरत है |

संत तुलसीदास जी कहते है- प्रारव्ध पहले रचा पीछे रचा शरीर, तुलसी चिन्ता क्यों करे भज ले श्रीरघुवीर|

चेत करो ! यह संसार सदा रहने के लिये नहीं है | यहाँ केवल मरने ही मरने वाले रहते हैं | फिर पैर फैलाये कैसे बैठे हो ? भगवान का निरन्तर स्मरण करो यही सार है

भगवान भोलेनाथ कहते हैं- उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना , सत हरि भजन जगत सब स्वप्ना | इसी भगवत्स्मरण में लौकिक ,पारलौकिक सभी समस्याऔं का समाधान निहित है |

भगवान की स्मृति सभी विपत्तियों का तत्काल नाश करने वाली है | भगवान को याद करने से सब काम ठीक हो जाते है इसलिये सच्चे हृदय से हे नाथ ! हे नाथ ! पुकारो | भगवान से एक ही बात कहो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं |

इसलिये मनुष्य को अपने विवेक को महत्व देना चाहिये कि शरीर संसार प्रतिक्षण बदलते है एक क्षण भी स्थिर नहीं रहते अत: यह भोग हमें कभी पूर्ण सुख नहीं दे सकते | प्रत्येक बस्तु प्रतिक्षण नाश की ओर जा रही है - इस बात को सीखना नहीं है प्रत्युत समझना है , अनुभव करना है | सच्चा अनुभव करने पर सुखासक्ति नहीं रहेगी |

( स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन से )

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