Skip to main content

मुचुकुन्द और श्रीकृष्ण।

मुचुकुन्द और श्रीकृष्ण:-
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

राजा मुचुकुन्द ने देवताओं को संग्राम में सहाय की थी। उनको अब आराम की आवश्यकता थी। देवताओं ने उनको वरदान दिया कि तुम
अब आराम से सो जाओ। तुम्हें कोई जगाएगा नहीं, विक्षेप नहीं डालेगा। अगर कोई जगाएगा तो तुम्हारी नजर उस पर पड़ते ही भस्म
हो जाएगा।

मुचुकुन्द चले गये पहाड़ों की गुफा में। अच्छा एकान्त वातावरण खोजकर सो गये।

इधर कालयवन श्रीकृष्ण के पीछे पड़ा था मारने के लिए। ठाकुर भागते-भागते उसी गुफा में पहुँच गये। अपना पीतांबर धीरे से निद्राग्रस्त मुचुकुन्द राजा को ओढ़ा दिया और स्वयं गुफा के कोने में छिप गये।

कालयवन भागता-भागता, श्रीकृष्ण को खोजता-खोजता गुफा में आया। वह समझा कि यहाँ आकर श्रीकृष्ण सो गये हैं। उसने
मुचुकुन्द राजा को श्रीकृष्ण समझकर लात मारी।

मुचुकुन्द जग गये। नींद में विक्षेप डालनेवाले पर कुपित हो गये। उनको तो देवताओं का वरदान मिला था। कुपित होकर कालयवन की ओर निहारा तो वह जलकर भस्म हो गया।

मुचुकुन्द का क्रोध शान्त हुआ तो गुफा में अलौकिक शान्त प्रकाश दिखाई देने लगा। कोई विलक्षण मधुरता महसूस होने लगी।

इधर-उधर देखा तो कृष्ण कन्हैया मुस्कुरा रहे हैं। श्रीकृष्ण तो गुफा में पहले भी थे लेकिन मुचुकुन्द सो रहे थे तो मुलाकात दर्शन नहीं हुए।

कुपित हुए तब भी श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं हुए।
जब शान्त होकर बैठे तब श्रीकृष्ण दिखाई दिये।

ऐसे ही तुम्हारी दिलरूपी गुफा में वह चैतन्य परमात्मा सदा सदा से है। तुम आलस्य में, प्रमाद में जीवन बिताते हो तब भी परमात्म
चैतन्य दिल की गुफा में होते हुए नहीं दिखता और तुम काम-क्रोध आदि विकारों से ग्रस्त होते हो तभी भी नहीं दिखता।

तुम जब शान्तमना होते हो तब उस श्रीकृष्ण तत्त्व की मुलाकात होती है, तब साक्षात्कार सम्भव बनता है।

राजा मुचुकुन्द ने भगवान से प्रार्थना कीः
"हे प्रभो ! आपके दर्शन तो हो गये, अब अपनी दृढ़ भक्ति दो। मुझे आत्मबोध हो जाये ऐसी भक्ति दो।"

श्रीकृष्ण ने कहाः "मुचुकुन्द ! जवानी में तुमने खूब भोग भोगे हैं इसलिए दृढ़ भक्ति अभी नहीं मिल सकती। थोड़ी और यात्रा करनी पड़ेगी, फिर दृढ़ भक्ति मिलेगी।"

वही मुचुकुन्द राजा कलियुग में नरसिंह मेहता हुए हैं और दृढ़ भक्त मिली है। उन्होंने गाया हैः

"अखिल ब्रह्माण्डमां एक तुं श्रीहरि जूजवे रूपे अनंत भासे...."

पहले तो केवल श्रीकृष्ण में उनको प्रभु दिखता था, अब उनको कीड़ी में भी प्रभु दिखता है तो दरिया की लहर में भी प्रभु दिखता है।

यशोगान करने वालों में भी प्रभु दिखता है और विरोध करने वालों में भी प्रभु दिखता है।

जिसको सबमें प्रभु दिखता है उसका अन्तःकरण प्रभुमय बन जाता है। वह अन्तःकरण जिस शरीर में रहता है वह शरीर भी चिन्मय होने लगता है, दिव्य होने लगता है। नरसिंह मेहता ऐसी दिव्यता को प्राप्त हुए थे।

             ।। बांके ठाकुर की जय हो ।।

Comments

Popular posts from this blog

श्री भक्तमाल कथा।

✨श्री भक्तमाल कथा✨ 🔸श्री गोवर्धन नाथ श्रीनाथजी के एक भक्त हुए जिनका नाम श्री त्रिपुरदासजी था। इन्होंने ऐसी प्रतिज्ञा की थी कि मैं प्रतिवर्ष शीतकाल में ठाकुर श्री गिरि...

कबीर दास।

एक समय की बात है कबीर दास जी गंगा स्नान करके हरी भजन करते हुए जा रहे थे, वो एक गली में प्रवेश कर निकल रहे थे, गली बहुत बड़ी थी, उनके आगे से रस्ते में कुछ माताएं जा रही थी, उनमे से एक क...

तुलसी बाबा कहते हैं।

कुछ व्यक्ति सोचते हैं की अपना जीवन ऐसा हो जिसमे कोई दुःख ना हो। और सारा अनमोल जीवन नश्वर सुख को पाने में खो देता है। लेकिन मेरे तुलसी बाबा कहते हैं:-    "निर्धन कहे धनवान सुखी,  ...