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हंसी।

|| श्री हरि: ||

'कनूं! यह बाट तो ले आ, लाल।' मैया चाहती है कि उसके पुत्र के हाथ - पैरों में कुछ शक्ति आये। यह चंचल प्रायः घर से भाग जाता है। यहां कुछ काम में लगा रहे, यहीं खेलता रहे तो अच्छा।

'अरे, सब के सब मत उठा। एक ले आ।' हड़बड़ाकर मैया ने मना किया। छोटे - बड़े कई बाट एक के ऊपर एक रखे हैं। श्याम एक साथ सबको उठाना चाहता है। मैया की आज्ञा का पालन करने के लिए बड़ी प्रसन्नता से दौड़ गया है, किंतु इतने बाट एक साथ इससे कैसे उठेंगे? इसके प्रयत्न में कहीं कोई खिसककर गिरे और चोट लगे तो......?

नन्हा-सा कन्हाई कटि में कछनी तक नहीं है। अलकें बहुत कम बिखरी हैं। अंगों में कुछ थोड़े चिन्ह हैं धूलि लगने के, किंतु थोड़े ही हैं वे। मैया ने कुछ देर पहले अपने पुत्रों को उबटन लगाकर नहलाया है। इसकी अलकों में अब भी मैया की सजायी मालती के पुष्पों का छोटा - सा गुच्छा लगा है। नेत्रों का काजल अभी भी फैला नहीं है और भाल पर गोरोचन की खौर के बीच का काला बिंदु भी ज्यों का त्यों है।

कृष्ण ने मैया की ओर मुड़कर देखा और किंचित हंसकर बैठ गया बाटों के समीप। इसे कौन - सा बाट ले जाना है? सबसे बड़ा बाट ले जायगा यह। ले ही जाना है तो छोटा बाट क्यों ले जाय। लेकिन बड़ा बाट सबसे नीचे है। उसके उपर के दो बाट उठाकर बैठे - बैठे इसने धीरे से भूमि पर रख दिये। अब शेष बाट बैठे - बैठे नहीं उठाये जा सकते। उठकर खड़ा हो गया यह और झुक कर एक - एक को उठाकर नीचे रखने लगा किसी प्रकार।

ओह! कितना भारी है यह बाट? श्यामसुंदर दूसरे बांटो को उठाने - धरने में ही थक गया है और उस पर यह तो पूरे ढाई सेर का है। कन्हाई दोनों हाथों से उठाने का प्रयत्न कर रहा है उसे। मुख लाल - लाल हो गया है। भाल पर स्वेद - बिंदु छा गये हैं।
कृष्णचंद्र इधर - उधर देखने लगा है। 'कोई सहायता नहीं करेगा?' मैया मना कर रही है। वह छोटा बाट लाने को कह रही है और हंस रही है। क्यों हंस रही है वह? श्याम छोटा बाट नहीं ले जायगा। वह तो इसी को ले जायगा। दोनों हाथों से पूरी शक्ति लगा रहा है यह।

यह दाऊ क्यों हंस रहा है? क्या मिल गया है इसे? यह तो ताली बजा - बजाकर, नाच - नाचकर हंस रहा है। मोहन अब रो पड़ेगा। कोई उठाकर इसके सिर पर बाट रख देता..... । यह देख रहा है बड़ी कातरता से इधर - उधर।

'नहीं उठता यह तुझसे? ला मैं उठा दूं।' बहुत भली है माता रोहिणी। ये श्याम की सदा सहायता करती हैं। बाट उठाकर कृष्णचंद्र के मस्तक पर धर दिया है इन्होंने। किंतु हाथ से उसका पूरा भार उठाये हैं। श्याम ने दोनों हाथों बाट को पकड़ रखा है मस्तक पर और बड़ी प्रसन्नता से मैया के पास आ रहा है। माता रोहिणी पीछे - पीछे बाट सम्हाले आ रही है।

'मेरा लाल ले आया बाट।' मैया ने अंक में लेना चाहा। स्वयं बाट सिर पर से ही सम्हाल कर ले लिया, पर यह दाऊ क्यों हंस रहा है? यह तो हंसता ही जा रहा है। श्यामसुंदर बड़े भाई की ओर मुड़कर अपनी सफलता के लिए हंस रहा है और हंसता हुआ यह दाऊ तो दोनों हाथ फैलाकर लिपट ही गया है इससे।

लेखक : सुदर्शन सिंह 'चक्र'

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