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साधकोपयोगी प्रश्रोत्तर

🌷श्रीहरी ।

स्वामी शरणानन्दजी महाराज

प्रश्न - मुझे साधन करते हुए एक अर्सा हो गया, किन्तु अभी तक सफलता के दर्शन नहीं हुए, क्या कारण है ?
उत्तर - जो मनुष्य असाधन को बनाए रखकर साधन करते हैं, उनको बहुत दिनों तक साधन करने पर भी वर्तमान में सिद्धि नहीं मिल सकती ।
जो मनुष्य वस्तु और व्यक्ति का आश्रय लेकर साधन करना चाहते हैं, उनको भी सफलता नहीं मिलती । इसलिए भगवान् का आश्रय लेकर साधन करो, सफलता अवश्य मिलेगी।
जो साधक देशकाल, परिस्थिति, वस्तु व व्यक्ति का आश्रय छोड़कर साधन करता है, उसको शीघ्र सफलता मिलती है।
'स्व' में सन्तुष्ट रहो, मानवता को महत्व दो और प्रभु पर विश्वास करो - यही साधन है और इसी का नाम जीवन है। जिसके जीवन में ये बातें आ जाती हैं, उसको सफलता अवश्य मिलती है ।

प्रश्न - स्वामीजी ! बोध किसे कहते हैं ?
उत्तर - सभी के मूल में एक अनुत्पन्न नित्य तत्व है । उसी की स्वतन्त्र सत्ता है । इसका ज्ञान होना ही बोध है ।

प्रश्न - महाराजजी ! मोह को बड़ा बलवान कहा जाता है, क्यों ?
उत्तर - देखो ! मायिक पदार्थ और ऐहिक सुख, यह सब नाशवान है। इनमें ममता करना तथा इनकी कामना करना - यह मनुष्य की भूल ही है । इनका वियोग तो एक दिन होगा ही । अगर इनमें ममता होगी, तो इनके वियोग-काल में दुःख ही होगा । इसलिए इनको दुःख रूप भी कहा है । अतः इन नाशवान और दुःखरूप पदार्थों के लिए अपना परलोक बिगाड़ देना बड़ी भारी भूल है ।
सच्चा बुद्धिमान तो वही है, जिसने सुख-भोग की आसक्ति को त्याग कर भगवान् में आत्मीयता करके शरणागत होकर अपना लोक व परलोक बना लिया एवं अपना कल्याण कर लिया। भोगों की आसक्ति त्याग कर भगवान् की शरण ग्रहण करो। यही कल्याण का सही व सच्चा मार्ग है । इसी में मानव-जीवन की सफलता व सार्थकता है ।

प्रश्न - पता चलता है कि संसार है और आगे भी रहेगा । क्या यह सत्य है ?
उत्तर - यह जो मानते हो संसार है, यह गलत है । जो दिख रहा है उसकी स्थिति नहीं है । उसे क्यों मानते हो ?

प्रश्न - महाराजजी ! सत्य की प्राप्ति में कितना समय लगता है ?
उत्तर - जिसकी जितनी तीव्र जिज्ञासा होती है, उसे उतना ही कम समय लगता है ।
जब आप सत्य के बिना चैन से न रहेंगे, वह उसी समय मिल जाएगा

प्रश्न‒यह जानते हुए भी कि ममता और कामना जीवनमें नहीं रखनी चाहिए, जब हमारे ऊपर कोई दुःख आता है तो दुःखी होकर विचलित हो जाते हैं । इससे छुटकारा पानेका उपाय क्या है ?

उत्तर‒ जिन वस्तुओं और व्यक्तियों द्वारा हम सुख भोगनेकी आशा करते हैं उनके वियोगसे अवश्य ही दुःखी होना पडेगा । अतः यदि हम चाहें कि दुःखसे छुटकारा मिले, तो वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति एवं अवस्थासे हमें सुख भोगना अथवा सुखकी आशा करना छोड़ देना चाहिए । तब जीवनसे दुःख अवश्य ही चला जाएगा ।

प्रश्न - महाराजजी ! धन का अभाव क्यों सताता है ?
उत्तर - तुम धन को अधिक महत्व देते हो ।

प्रश्न - स्वामीजी ! साधन में सफलता नहीं मिल रही है ।
उत्तर - अपनी रूचि, योग्यता और सामर्थ्य के अनुरूप साधन-निर्माण नहीं किया ।

- प्रश्नोत्तरी पुस्तक से

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